Homeप्रदेशझारखण्डहेमंत दादा हमारा हॉस्टल को सही कर दीजिए : आदिवासी बहन

हेमंत दादा हमारा हॉस्टल को सही कर दीजिए : आदिवासी बहन

प्रीतम सिंह यादव की विशेष ग्राउंड रिपोर्ट।

पाकुड़ : राज्य में सरकारें बनती है और उन तमाम वादों के साथ जो जनहित की होती है, आदिवासियों के विकास, रक्षा एवं हक की लड़ाई के वादों के साथ सरकार बनती है, लेकिन आज भी दुर्भाग्य इस बात की है कि दर्जनों बार जिला कल्याण विभाग में आवेदन देने के बाद भी बदहाली की जिंदगी जीने को विवश है सैंकड़ों आदिवासी बिटिया।

इस मामले पर शनिवार को सैकड़ों की संख्या में के. के. एम आदिवासी छात्रावास जो टाऊन हॉल के पास है कि आदिवासी बच्चियों ने उत्कल मेल के संवाददाता को अपना दुखड़ा सुनाया। मामला जिस छात्रावास में जिलेभर के लगभग 700 बच्ची रहती है, वहां की दीवारें गिरने के कगार में है, कई जगहों पर भवन जर्जर हो चुकी है, कई जगहों पर दरारें आ चुकी है, यहां तक दीवाल फट कर झुक गई है, जिन महिलाओं की सुरक्षा

की गारंटी सरकार करती है वही महिलाएं टूटा दरवाजा / खुली दरवाजा में शौच करने को मजबूर है। छात्राओं ने बताया कि रसोईघर देखने लायक है इसलिए लगभग बिटिया खुद 5 किलोमीटर चलकर कोयला लाकर चूल्हा में खाना बनाती है। सुरक्षा की बात करे तो 700 बिटिया रहने के बाद भी आजतक इनके सुरक्षा हेतु एक भी सुरक्षा गार्ड नहीं है जिससे अक्सर शाम के वक्त कुछ मनचलों का जमावड़ा छात्रावास के आस पास बनी रहती है।

भवन के छत पर जाने के लिए एक नई तकनीक का आधुनिक सीढ़ी बनाया गया है जो खुद खतरे में है। चारों और गंदगी भरा हुआ है और बड़े बीमारी को आमंत्रित कर रही है। पानी की किल्लत इस प्रकार है कि बच्चियों को डीडीसी आवास के सामने से पानी लाना पड़ता है। कमरे में पंखा तक नहीं है, बिजली का वायरिंग सारा खराब हो चुका है। भवन पूरी तरह से खंडार स्थिति में तब्दील हो चुकी है, बच्चियों ने राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत दादा से इस पर पहल करने की गुहार लगाई।

वही इस मामले पर दुर्गा सोरेन सेना के जिला अध्यक्ष उज्ज्वल भगत ने चेतावनी देते हुए कहा कि आवेदन की प्रक्रिया दर्जनों बार हो चुकी है लेकिन किसी ने आजतक नहीं सुना, उन्होंने कहा कि इस मामले पर राज्य के कल्याण मंत्री चमड़ा लिंडा से भी बात हुई है लेकिन पहल आजतक नहीं हुआ। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि अगर इस मामले पर जिला प्रशासन एवं सरकार ध्यान नहीं देती है तो ये तमाम बच्चियां सड़क पर आंदोलन करने को विवश हो जायेगी और उस समय हमलोग किसी का नहीं सुनेंगे जिसका जिम्मेवार जिला प्रशासन एवं विभाग होगा।

मामले को लेकर परियोजना निर्देशक आईटीडीए सह जिला कल्याण पदाधिकारी के प्रभार में पदस्थापित अरुण कुमार एक्का से दूरभाष पर इस मामले को लेकर पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मामले की जानकारी उन्हें है तथा छात्रावास के लिए कोई बजट नहीं आती है, हमलोगों को बजट बनाकर भेजना होता है जिसकी तैयारी चल रही है। मतलब साफ है कि दर्जनों बार आवेदन देने के बाद भी आजतक इस मामले पर बजट नहीं बना, अभी भी इसकी तैयारी चल रही है। बरहाल जो भी हो लेकिन जिला प्रशासन एवं राज्य सरकार को इन आदिवासी बच्चियों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

RELATED ARTICLES

Most Popular