पाकुड़ संवाददाता: चाहे लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव यूं कहें चुनाव का महापर्व आते ही उम्मीदवार चाहे किसी भी पार्टी या निर्दलीय से हो कई लुभावने बातों को और वादों को चिक चिक कर माइक में चिल्ला कर लोगों को आकर्षित कर मतदान लेकर विजय भव: हो जाते हैं, विधानसभा, लोकसभा, पार्षद सहित अन्य कई जगहों पर अगले 5 वर्षों के लिए नेता लोगन का कब्जा तो हो जाता है लेकिन जिन वादों के सहारे जीत हासिल होती है उन तमाम वादों को निभाने में जनप्रतिनिधि कामयाब नहीं हो पाते हैं जिसके कारण जनता को 5 साल तकलीफ एवं आंसुओं से भरा जिंदगी जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

बात करते हैं नियोजन की वैसे तो राज्य सरकार में अभी भी अनेकों विभाग है जहां कर्मियों की कमी के कारण विभाग सही रूप से कार्य नहीं कर पाती है। वही सिर्फ पाकुड़ जिले की बात करें तो आज भी प्रत्येक दिन सैकड़ो की संख्या में यहां के महिला पुरुष बेरोजगार ट्रेन पकड़ कर पंजाब, चेन्नई, दिल्ली सहित अन्य शहर रोजगार के तलाश में निकल पड़ते हैं। सड़ पर बोड़े में कपड़े एवं आवश्यक वस्तुओं को डालकर इस ठंडी कड़कते ठंड के परवाह किए बिना अपने परिवार का भरण पोषण के उद्देश्य को लेकर बाहर मात्र 10 से 15 हजार की नौकरी करने लोग निकल पड़ते हैं, कुछ तो अपने परिवार एवं बच्चों को साथ भी चल पड़ते हैं क्योंकि जिले में रोजगार ही नहीं है। बुधवार को पाकुड़ रेलवे स्टेशन पर यूं टहलते हुए रात्रि में जब पत्रकार पहुंचे तो सैकड़ो की संख्या में लोग ट्रेन पकड़ने के लिए बाहर जा रहे थे।

पूछने पर कुछ लोगों ने बताया क्या करें बाबू ? यहां पर रोजगार नहीं है, भूखे मरने से अच्छा है बाहर जाकर कम से कम दाल रोटी का तो इंतजाम हो जाएगा। इन पलायन करने वाले लोगों में अधिकांश लोग आदिवासी समाज के होते हैं जिनके सहारे सरकारी बनती है लेकिन आज भी पाकुड़ जिला पिछड़ा बनकर रह गया है जबकि यह जिला खनिज से भरा जिला है। और इस व्यवस्था का शुद्धि लेने वाला भी कोई नहीं होता। ना जिला प्रशासन , न जनप्रतिनिधि या कहे ना ही सरकार। वही इस मामले पर जिला नियोजन पदाधिकारी राहुल कुमार से पूछा गया तो उन्होंने भी साफ शब्दों में कह दिया कि जिले से लोग अगर पलायन कर रहे हैं तो सबसे बड़ा कारण यहां अवसर नहीं है और दूसरा यहां कोई कल कारखाना या फैक्ट्री नहीं है जहां लोग जो कम पढ़े लिखे हैं मजदूरी कर जीवन यापन कर सके। इस तरह के नजारे हर दिन रेलवे स्टेशन एवं बस स्टैंड पर देखने को मिल जाएगा लेकिन इसकी शुद्ध लेने के लिए कोई भी खड़ा नहीं होगा। जबकि पाकुड़ जिला एकमात्र ऐसा जिला है जो पूर्व रेलवे को सबसे बड़ा और ज्यादा राजस्व देने वाला जिला है फिर भी यहां से लोग पलायन करने को मजबूर है। पलायन करते वक्त एक महिला से पूछा गया कि आपको तो मईया सम्मान योजना के तहत सरकार ढाई हजार रुपए प्रति माह दे रही है फिर भी आप बाहर क्यों जा रहे हैं। उन्होंने साफ कहा कि जो ढाई हजार रुपए की बात है यह भी ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है।

सरकार वृद्धा पेंशन तो समय पर मात्र ₹1000 दे नहीं पा रही है तो ढाई हजार रुपया प्रति माह समय पर क्या देगी। अगर हम इसके सहारे रह गए तो आने वाला समय हम सभी भूख से मर जाएंगे। इसलिए हमें बाहर जा रहे है और अपना मजदूरी कर अपने परिवार का जीवन यापन आराम से करेंगे। जरूरत है ऐसे विषय पर जिले के उपायुक्त सहित जिला प्रशासन एवं राज्य सरकार को पहल करने की ताकि पाकुड़ जिले में कल कारखाना अगर लग जाए तो यहां से लोग बाहर जाकर दूसरे राज्य में काम नहीं करेंगे, और इन्हीं सब वादों के सहारे सरकार बनी है तो अब समय आ गया है स्थानीय विधायक, सांसद और राज्य सरकार को अपने वादों को पूरा करने का।